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फूलों से नदी नाव / नरेश अग्रवाल
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यहां दृश्य टुकड़ों-टुकड़ों में बिखरे हुए हैं
एक-एक कण सभी को समर्पित
थोड़े से बादल हटते हैं
दृश्य कुछ और हो जाता है
हवा चलती है जैसे हम सभी को
एक साथ समेट लेने को
मन में इच्छा होती है वैसी आंखें मिल जाएं
जो सब कुछ ले जाएं अपनी झोली में।
थोड़ी सी तस्वीरें खींची हुई मेरे पास
एक पेड़ की डालियों जितनी भर
और यहां तो हर क्षण
कहीं भी जा सकते हैं आप दूर-दूर तक
वो भी पलक झपकाये बिना
और भूल जाते हैं हम
किस दूल्हन का मुखड़ा ढूंढ़ रहे हैं हम यहां।