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स्वाद / अनिल विभाकर

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मुझे उन आंखों में आंसू नहीं दिखने चाहिए जो मुझे प्रिय हैं
उन होंठों पर मुस्कान चाहिए जो मुझे प्रिय हैं
उस चेहरे पर उदासी नहीं, खुशी चाहिए जो मुझे प्रिय है
उस दिल में हताशा नहीं चाहिए जिसमें मैं रहता हूं
सागर की लहरों सा प्यार हमेशा बुलंदियों की ओर ले जाता है
जिंदगी धरती पर तो होती है, देखती है हमेशा आसमान की ओर
आसमान में उड़ते हैं पंछी बिना धरती का सहारा लिए
यह नहीं कहता कि धरती जरूरी नहीं
बिना आसमान के धरती भी बेकार है

आसमान में सूरज होता है
तारे होते हैं
चांद होता खूबसूरत-सा बिल्कुल सोने जैसा
इन सब के बगैर सूनी हो जाएगी धरती
बिल्कुल ऊसर लगेगी रेगिस्तान की तरह

स्वाद के बगैर नहीं चलती जिंदगी
बिना किसी स्वाद के कैसे कटेगा यह पहाड़
पहाड़ नहीं पंछी बनने दो इसे।