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समुंदर की लहरों / रमेश तैलंग
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समुंदर की लहरों, उछालें न मारो।
हवाओं का गुस्सा न हम पर उतारो।
बनाएंगे बालू के घर हम यहाँ पर,
जगह ऐसी पाएंगे सुंदर कहाँ पर?
न यू अपनी ताकत की शेखी बघारो,
कभी झूठी-झूठी ही हमसे भी हारो।
हमें तो यहाँ पर ठहरना है कुछ पल,
दिखा लेना गुस्से के तेवर कभी कल,
करो दोस्ती हमसे, बाँहें पसारो।
बहो धीरे-धीरे, थकानें उतारो।
समुंदर की लहरों, उछालें न मारो।