भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब क्यों भला किसीको हमारी तलाश हो! / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:06, 14 जून 2011 का अवतरण
अब क्यों भला किसीको हमारी तलाश हो!
गागर के लिए क्यों कोई पनघट उदास हो!
कहते हैं जिसको प्यार है मजबूरियों का नाम
क्यों हो नज़र से दूर अगर दिल के पास हो!
क्योंकर रहे बहार के जाने का ग़म हमें
कोयल की हर तड़प में अगर यह मिठास हो!
वादों को उनके खूब समझते हैं हम, मगर
क्या कीजिये जो दिल को तड़पने की प्यास हो!
भाती नहीं है प्यार की खुशबू जिसे, गुलाब!
शायद कभी उसे भी तुम्हारी तलाश हो!