भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:38, 14 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चलता है साथ-साथ कोई यों तो राह में
बेगानापन भी कुछ है मगर उस निगाह में

वह जानते हमीं हैं जो खाई है हमने चोट
एक बेरहम को अपना बनाने की चाह में

आये न हो हमारी कहीं, रात, उनको याद
शबनम के भी निशान हैं फूलों की राह में

नश्तर चुभा के दिल के वे होते गए करीब
कहते गए हम 'और' 'और' 'आह' 'आह' में

दम भर भी बाग़ में न रहे चैन से गुलाब
काँटें बिछे थे प्यार के आँचल की छाँह में