भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नज़र भले ही हमें देख के शरमा ही गयी / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:47, 26 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)
नज़र भले ही हमें देख के शरमा ही गयी
झलक तो प्यार की पलकों से छन के आ ही गयी
क़सूर कुछ तेरे हाथों का भी तो है ,फनकार!
करें भी क्या जो ये तस्वीर दिल को भा ही गयी!
चले जो हम तो चली साथ-साथ क़िस्मत भी
हरेक मुकाम पे पहले ये बेवफ़ा ही गयी
संभाली होश की पतवार बहुत हमने, मगर
पहुँच के नाव किनारे पे डगमगा ही गयी
गली में उनके हज़ारों महक उठे हैं गुलाब
हमारे दिल की तबाही भी रंग ला ही गयी