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सौ ऐब हैं मुझमें, न कोई इल्मो-हुनर है / गुलाब खंडेलवाल
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सौ ऐब हैं मुझमें न कोई इल्मोहुनर है
ज़र्रे को आफताब किया तेरी नज़र है
हरदम चिराग-दर-चिराग जोड़ते चलो
यह रात है ऐसी कि नहीं जिसका सहर है
कुछ तो सता रहा है ज़माने का ग़म हमें
कुछ आपकी खामोश निगाहों का असर है
फूलों से हार गूँथ के लाना है और बात
काँटों से ज़िन्दगी को सजाने में हुनर है
कुछ बुलबुलों ने लूट लिया, कुछ बहार ने
बाकी जो है गुलाब वो दुनिया की नज़र है