भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भले ही दूर नज़र से सदा रहा हूँ मैं / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 15 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…)
भले ही दूर नज़र में सदा रहा हूँ मैं
महक तो आपकी साँसों की पा रहा हूँ मैं
मिलेगा कुछ तो उजाला भटकनेवालों को
चिराग़ अपने लहू से जला रहा हूँ मैं
निशान आपके क़दमों के मिल न पाते हों
निशान सर की रगड़ से बना रहा हूँ मैं
ज़माना हो गया आँखों का खेल चलते हुए
गले से आज तो लगिए कि जा रहा हूँ मैं
किसी ने अपनी उँगलियों से छू दिया है गुलाब
नहीं पता भी मुझे अब कि क्या रहा हूँ मैं