भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू ही नहीं अधीर / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=तिलक करें रघुवीर / गुलाब …)
तू ही नहीं अधीर
तेरे पहले भी औरों को रुला गयी यह पीर
पद गाये कबीर ने झीने
गीत बंग कवि रसभीने ने
मीरा सूर और तुलसी ने
हृदय रख दिया चीर
पर उनमें था श्रद्धा का बल
लक्ष्य नहीं होता था ओझल
तू शंका, दुविधा में प्रतिपल
कैसे पाये तीर!
जब तू चन्दन बन जायेगा
अपने को घिसकर लायेगा
तभी विश्व यह दुहरायेगा
तिलक करें रघुवीर
तू ही नहीं अधीर
तेरे पहले भी औरों को रुला गयी यह पीर