भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कहाँ जायेगी यह झंकार / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:54, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=तुझे पाया अपने को खोकर / …)
कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार
जब यह दीपक बुझ जायेगा
कहाँ प्रकाश शरण पायेगा!
किस अनंत में मँडरायेगा
चेतन खो आधार!
सभी ज्ञान, विज्ञान, बुद्धिबल
तन की साथ न जायेंगे जल!
यदि चित् महाचेतना से कल
हो ले एकाकार!
जड़ता से जब चलूँ विदा ले
चेतन भी यदि साथ छुड़ा ले
निज को किसके करूँ हवाले
खोल शून्य का द्वार!
कहाँ जायेगी यह झंकार
जब नीरव हो जायेंगे जीवन-वीणा के तार