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यह तो शीशमहल है / गुलाब खंडेलवाल
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यह तो शीशमहल है
राग बिरंगे शीशों की ही इसमें चहल-पहल है
शीशे के हैं सारे प्राणी
भवन, बगीचे, राजा-रानी
सब पर है सोने का पानी
करता जो झलमल है
शीशा है आँखों को ठगता
मन को सौ रंगों से रँगता
छोटा, बड़ा, जहाँ जो लगता
शीशे का ही छल है
फिरता जग छवि से भरमाया
इस माया को समझ न पाया
इस झिलमिल शीशे की छाया
स्थिर भी, चिर-चंचल है
यह तो शीशमहल है
राग बिरंगे शीशों की ही इसमें चहल-पहल है