भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काल का रथ यदि उलटा जाता, / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:02, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=गीत-रत्नावली / गुलाब खंड…)
काल का रथ यदि उलटा जाता,
तो घर में रहकर ही, रत्ना! मैं प्रभु के गुण गाता
दोनों मिलकर साँझ-सवेरे
हरिमंदिर के देते फेरे
पर क्या करूँ! मार्ग से मेरे
कोई लौट न पाता
राजधर्म का पालन करने
त्यागी प्राणप्रिया रघुबर ने
जिस दिन छुआ कमंडल कर ने
छूटा जग से नाता
तन पर गैरिक पट धारण कर
विवश तुझे हूँ यह कहने पर
दे सुहाग इस झोली में भर
भिक्षा में, 'ओ माता!'
काल का रथ यदि उलटा जाता,
तो घर में रहकर ही, रत्ना! मैं प्रभु के गुण गाता