भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सितारों से आगे बढ़े जा रहे हैं / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:50, 10 जुलाई 2011 का अवतरण
सितारों से आगे बढ़े जा रहे हैं
निगाहों पे किसकी चढ़े जा रहे हैं!
न जिसके शुरू-आख़िरी के हैं पन्ने
किताब एक ऐसी पढ़े जा रहे हैं
जो सर फोड़ना ही रहा पत्थरों से
ये फूलों के दिल क्यों गढ़े जा रहे हैं!
उधर राह भी देखता होगा कोई
क़दम जिस तरफ़ ये बढ़े जा रहे हैं
गुलाब, आज मिटने का ग़म है तो इतना
तेरे हाथ से अनगढ़े जा रहे हैं