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लड़की और रेल / स्वप्निल श्रीवास्तव
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रोज़ तड़के उठकर अंगीठी
सुलगाती है लड़की
और रेल से उतरते हुए यात्रियों को
उत्सुकता से देखती है
रेल लम्बी सीटी के साथ
स्टेशन पर रुकती है
लड़की को अच्छी लगती है
रेल की छक-छक
कभी-कभी वह घर के बाहर
निकल कर रेल को देखती है
अपनी उंगलियों पर रेल के डिब्बे
गिनती है
यात्रियों को हाथ हिलाकर
विदा करती है
जब प्लेटफ़ार्म खाली हो जाता है
लड़की प्लेटफ़ार्म पर छूटे हुए
टिकटों को इकट्ठा करती है
उन्हें मूल्यवान चीज़ की तरह
सजाकर ताखों पर रखती है
टिकट के साथ लड़की की
इच्छाएँ जुड़ी हुई हैं