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कैटवाक / अवनीश सिंह चौहान
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जेठ-दुपहरी चिड़िया रानी
सुना रही है फाग
कैटवाक करती सड़कों पर
पढ़ी-पढ़ाई चिड़िया रानी
उघरी हुई देह से जादू
पलछिन करती चिड़िया रानी
क़ैद सभी को कर लेती यह
जलते हुए चिराग़
बिना परों के उड़ती-फिरती
ताक रहे तारे ललचाए
हाथ जोड़कर कुआँ खड़ा है
पानी लेकर बदरा आए
जब चाहे तब सींचा करती
अपने मन का बाग
कितने उलझे दृश्य-कथा में
कुछ द्विअर्थी संवादों के
अनजानी मस्ती में खोए
आकर्षण झूठे वादों के
पल भर में बरसाती पानी
पल भर में है आग