भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोक पाएंगीं क्या / आनंद कृष्ण
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:54, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आनंद कृष्ण }} Category: ग़ज़ल <poem> '''एक ग़ज़ल : "रोक पाएंग…)
एक ग़ज़ल : "रोक पाएंगीं क्या ........."
रोक पाएंगीं क्या सलाखें दो-?
जब तलक हैं य' मेरी पांखें दो ।
जिसने सबको दवा-ए-दर्द दिया-
आज वो माँगता है- साँसें दो ।
चाह कर भी निकल नहीं सकता-
मुझको घेरे हुए हैं बाँहें दो ।
वो इबादत हो या की पूजा हो-
एक मंजिल है और राहें दो ।
मुझको कोई बचा नहीं पाया-
मेरी कातिल- तुम्हारी आँखें दो ।
या तो आंसू मिलें, या तन्हाई-
एक जुर्म की नहीं सजाएं दो ।