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गुनगुनी धूप है / ओम निश्चल

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गुनगुनी धूप है गुनगुनी छाँह है. एक तन एक मन एक वातावरण, प्यार की गंध का जादुई व्याकरण, मन में जागी मिलन की अमिट चाह है. नींद में हम मिलें स्वप्न में हम मिलें ज़िंदगी की हरेक साँस में हम खिलें हमको जग की नहीं आज परवाह है. चिट्ठियाँ जो लिखीं संधियाँ जो रचीं तुम मिले जब से बेचैनियाँ हैं जगी कल्पना में पगी प्यार की राह है. दो घड़ी बैठ कर दो घड़ी बोल कर तुम गए साँस में छंद-सा घोल कर सिंफनी नींद है चंपई ख्वाब है. </poem>