भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पिछला / मधु शर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:01, 11 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु शर्मा |संग्रह=जहाँ रात गिरती है }} गाढ़े गहरे के पी...)
गाढ़े गहरे के पीछे
छिपा है फीका
रंग ने कहा--
और हँस दिया
तेज़ के बहुत बाद
आएगा आगे धीमा
बताया रास्ते ने,
वह ठहरा नहीं
मैंने एक फीका उठाया
और धीमे से कहा--
'चलो!'