भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पर्वत पर आग जला... / ठाकुरप्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 21 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह |संग्रह=वंशी और मादल/ ठाकुरप्रसाद सि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पर्वत पर आग जला बासन्ती रात में

नाच रहे हैं हम-तुम हाथ दिए हाथ में


धन मत दो, जन मत दो

ले लो सब ले लो

आओ रे लाज भरे

खेलो सब खेलो

होठों पर वंशी हो, हवा हँसे झर-झर

पास भरा पानी हो, हाथों में मादर


फिर बोलो क्या रखा

दुनिया की बात में ?

हाथ दिए हाथ में