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पाँच मूर्तियाँ / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
यह विखंडित मूर्ति
मथुरा की सड़क पर
मिली मुझको,
शीश-हत,
जाँघें पसारे
- खुले में विपरीत-रति-रत
- अरे, यह तो पंश्चुली है!
शेष भाग शीघ्र ही टंकित कर दिया जाएगा।