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पसीने का टीका / रमेश रंजक

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मेरा चेहरा
अगर नहीं बन पाया मेरा गीत
                          कुछ नहीं

चेहरा जिस पर धूल पड़ी है झीनी-झीनी-सी
जिसके नीचे आग दबी है नई रोशनी की

खाकर मार समय की मेरी बोझिल पेशानी
अगर नहीं गा पाई मेरी टूटन का संगीत
                                  कुछ नहीं

मेरा गीत न गा पाया यदि दर्द आदमी का
अगर नहीं कर पाया थमे पसीना का टीका

भाषा न बोल पसया हारी-थकी झुर्रियों की
लाख मिले मुझको बाज़ारू जीत
                                   कुछ नहीं