राग देवगंधार
हरि किलकत जसुमति की कनियाँ ।
मुख मैं तीनि लोक दिखराए, चकित भई नँद-रनियाँ ॥
घर-घर हाथ दिवापति डोलति, बाँधति गरैं बघनियाँ ।
सूर स्याम की अद्भुत लीला नहिं जानत मुनिजनियाँ ॥
भावार्थ :-- हरि श्रीयशोदाजीकी गोदमें किलकारी ले रहे हैं । अपने (खुले) मुखमें उन्होंने तीनों लोक दिखला दिये, जिससे श्रीनन्दरानी विस्मित हो गयीं । (कोई जादू-टोना न हो, इस शंका से) घर-घर जाकर श्यामके मस्तकपर आशीर्वादके हाथ रखवातीघूमती हैं और गलेमें छोटी बघनखिया आदि बाँधती हैं । सूरदासजी कहते हैं कि श्यामसुन्दरकी लीला ही अद्भुत है, उसे तो मुनिजन भी नहीं समझ पाते । (श्रीयशोदाजी नहींसमझतीं इसमें आश्चर्य क्या ।)