भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गोद खिलावति कान्ह सुनी, बड़भागिनि हो नँदरानी / सूरदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:53, 25 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूरदास }} राग कान्हरौ गोद खिलावति कान्ह सुनी, बड़भाग...)
राग कान्हरौ
गोद खिलावति कान्ह सुनी, बड़भागिनि हो नँदरानी ।
आनँद की निधि मुख जु लाल कौ, छबि नहिं जाति बखानी ॥
गुन अपार बिस्तार परत नहिं कहि निगमागम-बानी ।
सूरदास प्रभु कौं लिए जसुमति,चितै-चितै मुसुकानी ॥
सुना है कि महाभाग्यवती श्रीनन्दरानी कन्हैयाको गोदमें लेकर खेलाती थीं । लालकामुख तो आनंदकी निधि (कोष) है, उसकी शोभाका वर्णन नहीं किया जा सकता । उनके गुण अपार हैं, वेद और शास्त्रोंके द्वारा भी उनके विस्तारकावर्णन नहीं हो सकता है ।सूरदासजी कहते हैं कि मेरे ऐसे स्वामीको गोदमें लेकर यशोदाजी उन्हें देख-देखकरमुसकराती (हर्षित होती) थी ।