सोच रहा
चुप बैठा धुनिया
भीड़-भाड़ वह-
चहल-पहल वह-
बंद द्वार का
एक महल वह
ढोल मढ़ी-सी
लगती दुनिया
मेहनत के मुंह
बंधा मुसीका
घुटता जाता
गला खुशी का
ताड़ रहा है
सब कुछ गुनिया
फैला भीतर तक
सन्नाटा
अंधियारों ने
सब कुछ पता
कहाँ -कहाँ से
टूटी पुनिया