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कवर टिप्पणी / डॉ.बशीर बद्र

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    अभिमत/कवर टिप्पणी

     मौलाना हारून ’अना’ क़ासमी ऐसे नौजवान ग़ज़ल के शायर है जिनके फ़िक्रो फ़न
में इनकी सच्ची रियाज़त, वसीअ़ मुतालआ ,
और शायराना सदाक़त हैं।
इनके अच्छे शेरों में ग़ज़ल की सदियों की परम्पराएं अपने ज़माने से बड़े प्यार से गले मिल रही हैं। इन रिवायतों में नया लबो-लहज़ा इनकी अपनी पहचान बनाने में पूरी तरह कामयाब हो रहा है। इनके कुछ अच्छे शेर सुबह की धूप में मुस्कुराते फूलों की तरह उजले-उजले हैं।
मुझे यक़ीन है कि हमारे हिन्दी के नौजवान दोस्त भी इस मजमूए को ज़रूर पसन्द करेंगे।
                         
' डॉ.बशीर बद्र'