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मायूसी / अजय मंगरा

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खुद भी लाल कफन ओढ़े हुए
वह देखो सूरज डूब रहा है
घंटों पहले अरमानों का
दिया जलाने आया था
खून में उन अरमानों को
लुढ़काते हुए अब डूब रहा है।
कल यह सूरज फिर निकलेगा
कल भी उन अरमानों का
नाहक खून दोबारा होगा
खुद भी लाल कफन ओढ़े हुए
वह देखो सूरज डूब रहा है