भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुंहु ओर से फाग मड़ी उमड़ी / पजनेस

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुँहु ओर से फाग मड़ी उमड़ी जहाँ श्री चढ़ि भीर ते भीर भिरी ।
कुच कँचुकी कोर छुये घरकै पजनेस फँदी फरकै ज्योँ चिरी ।
धधकी दै गुलाल की घूँघुरि मेँ धरी गोरी लला मुख मीढ़ी सिरी ।
उझकै झँपै कौँधे कढ़ै तड़िता तड़पै मनौ लाल घटा मे घिरी ।


पजनेस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।