राधिका और कान्हा / सुधा गुप्ता
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अनूठी जोड़ी
राधिका और कान्हा
ब्रज मण्डल
ज्योतित कर रहे
दिवस और यामा
कैसी सलोनी
वह मृग नयनी
किशोरी राधा
मन श्याम को दिया
सर्वस्व गँवा दिया
मिली झलक
लगी नहीं पलक
रूप सलोना
श्याम ने किया टोना
राधिका भूली सोना
राधिका झूलैं
कान्हा पेंग बढ़ावैं
झूला जो उठे
डरैं भोरी किशोरी
सो गुहार मचावैं
लिखा है श्याम
राधा रोम-सेम में
मुरलीधर
मोहन गिरिधर
प्रणय प्राणाधार
बाँस की पोरी
बनी रे मुरलिका
श्याम दीवानी
राधिका रो-रो मरे
चुराए, छिपा धरे
बंशी बजा के
‘राधा-राधा पुकारें
कुंज में कान्हा
वंशी को सौत माने
हुई राधा बावरी
लो, फिर बजी
कन्हैया की बाँसुरी
बहकी राधा
महारास की रात
चाहे, न होवे प्रात
नींद भी तेरी
सपने भी तेरे ही
राधा की आँखें
दरस को तरसें:
‘श्यामघन’ बरसें
कृष्ण कन्हैया
हाथ में लकुटिया
चले वन को
यशोदा पीछे फिरेः
‘लाल, कलेऊ तो ले’
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