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सही अस्तित्व / बृजलाल रामदीन "करुण"
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झरते चूने के कण
आँखों का वह आना
जलन, चौंधियाना
मलबे के नचे दबे कंधे
किंकियाती पुलियाँ
तनी रस्सियाँ
कड़ी धूप, छालेदार हाथ
नंगी पीठ, बरसते कोड़े
आसमाँ पर उठते तराशेपत्थर
दबते हृदय, वे फूलती साँसें
आकस्मिक मौत का आतंक
उनके वे सार घुटते क्षण....
गगनचुम्बी कारखाने की चिमनियाँ
वृहत चूने की भट्ठियाँ
भीमकाय पाषाणी मेड़
कर्मवीरता के सारे प्रतीक
बनाम उनके मकबरे, समाधियाँ
आज भी हरेक पल जगातीं
कुलियाँ का दुखड़ा रोती
सिसकती....
अपना सही अस्तितव ढूँढती
पर.....