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रात भर / नारायणपत दसोई

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रात भर
अंधेरा बीतने की
तुमने प्रार्थना की
क्षितिज से जब ऊषा मुस्करायी
और
सवेरा इठलाता हुआ
तुम्हारे आंगन में
प्यार से उतरा
अठखेलियाँ खेलने के लिए
तक द्वार और खिड़कियाँ
बन्द ही रख छोड़ीं।