भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रात भर / नारायणपत दसोई
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:20, 8 मई 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नारायणपत दसोई }} {{KKCatKavita}} <poem> रात भर अं...' के साथ नया पन्ना बनाया)
रात भर
अंधेरा बीतने की
तुमने प्रार्थना की
क्षितिज से जब ऊषा मुस्करायी
और
सवेरा इठलाता हुआ
तुम्हारे आंगन में
प्यार से उतरा
अठखेलियाँ खेलने के लिए
तक द्वार और खिड़कियाँ
बन्द ही रख छोड़ीं।