भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निसिदिन बरसत नैन हमारे / सूरदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:58, 2 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: कवि: सूरदास Category:कविताएँ Category:सूरदास निसिदिन बरसत नैन हमारे। सदा रहत ...)
कवि: सूरदास
निसिदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबते स्याम सिधारे।।
अंजन थिर न रहत अँखियन में, कर कपोल भये कारे।
कंचुकि-पट सूखत नहिं कबहुँ, उर बिच बहत पनारे॥
आँसू सलिल भये पग थाके, बहे जात सित तारे।
'सूरदास' अब डूबत है ब्रज, काहे न लेत उबारे॥