भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तुम्हें जानता नहीं / अज्ञेय
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 1 अगस्त 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=चिन्ता / अज्ञेय }} {{KKC...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैं तुम्हें जानता नहीं।
तुम किसी पूर्व परिचय की याद दिलाती हो, पर मैं बहुत प्रयत्न करने पर भी तुम्हें नहीं पहचान पाता।
मुझे नया जीवन प्राप्त हुआ है। कभी-कभी मन में एक अत्यन्त क्षीण भावना उठती है कि जिस पंक से निकल कर मैं ने यह नवीन जीवन प्राप्त किया है, तुम उसी पंक का कोई जन्तु हो। जो केंचुल मैं ने उतार फेंकी है, तुम उसी का कोई टूटा हुआ अवशेष हो।
इसके अतिरिक्त भी हमारा कोई परिचय या सम्बन्ध है, यह मैं किसी प्रकार का अनुभव नहीं कर पाता।
(केवल ऐसा कहते-कहते मेरी जिह्वïा रुक जाती है और कंठ रुद्ध हो जाता है।)
दिल्ली जेल, 31 अक्टूबर, 1932