भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फेशबुक एक आत्मालोचना / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
कुमार मुकुल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:18, 5 अगस्त 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल }} <poem> अपना चेहरा उठाए खडे हैं हम बारह…)
अपना चेहरा उठाए
खडे हैं हम बारहा
मुकाबिल आपके
अब आंखें हैं
पर द़ष्टि नहीं है
मन हैं
पर उसकी उडान
की बोर्ड से कंपूटर स्क्रीन तक है
काम कम है हमारे पास
और उपलब्धियां हैं बेशुमार
जहालत और पीडा से भरे
इस जहान में
अपना चेहरा लिए
खडे हैं हम
सबसे असंपृक्त
पहले आप
पहले आप की संस्क़ति
संभालते हुए