भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बंटवारा कर दो / महेश अनघ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बँटवारा कर दो ठाकुर ।

तन मालिक का
धन सरकारी
मेरे हिस्से परमेसुर ।


शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ
सड़कें दे दो झंडों को
पर्वत कूटनीति को अर्पित
तीरथ दे दो पंडों को ।
खीर-खांड ख़ैराती खाते
हमको गौमाता के खुर


सब छुट्टी के दिन साहब के
सब उपास चपरासी के
उसमें पदक कुंअर जू के हैं
ख़ून पसीने घासी के
अजर-अमर श्रीमान उठा लें
हमको छोड़े क्षण भंगुर


पँच बुला कर करो फ़ैसला
चौड़े-चौक उजाले में
त्याग-तपस्या इस पाले में
गजभीम उस पाले में
दीदे फाड़-फाड़ सब देखें
हम देखेंगे टुकुर-टुकुर