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घूँघट के पट / कबीर

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कवि: कबीर~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*


घूँघट का पट खोल रे,तोको पीव मिलेंगे।

घट-घट मे वह सांई रमता,कटुक वचन मत बोल रे॥

धन जोबन का गरब न कीजै,झूठा पचरंग चोल रे।

सुन्न महल मे दियना बारिले,आसन सों मत डोल रे।।

जागू जुगुत सों रंगमहल में,पिय पायो अनमोल रे।

कह कबीर आनंद भयो है,बाजत अनहद ढोल रे॥