भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनापन / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:26, 11 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालित्य ललित |संग्रह=समझदार किसि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
अपनों को
पुरस्कृत करना
बड़ा बेहतर पल होता है
उस समय जब आप अपनी
सभी शुभकामनाएं
हस्तांतरित करते हैं
और वे पल अचानक
अविस्मरणीय हो जाते हैं
और
आप इतिहास में दर्ज
हो जाते हैं
जैसे माँ जन्म देकर
सुख का एहसास करती है
जैसे बिटिया
परीक्षा में अव्वल आकर
माँ-पिता का धन्यवाद करती है
या
बेटे की तरक्की से
पिताजी खुशी से झूम जाते हैं
जैसे बूढे़ दादा जी को
उनका पोता
चश्मा ठीक करवाकर पहनाता है
जैसे मोहल्ले की
गर्भवती को
बड़ी-बढ़ियों का आशीर्वाद
मिलता है
सान्निध्य में मिलती हैं
खुशियां
अपनापन, आत्मीयता
और सरोकारों का ताना-बाना
जरा जुड़कर देखो
हर पल तुम्हारा है
खुशियां बांटकर देखो
खुश होकर देखो
बिखरे हुए को जोड़कर देखो
परस्पर देखो
परंपरागत देखो
हर पल पुरस्कृत हो जाता है
जब अपने हों साथ
अपनो से करते हो बात
यही तो है जीवन की
सच्ची सौगात
केवल तुम्हारे लिए
अपने लिए
अपने लोगों के लिए
दुनिया में फैले इंसानों के लिए
जो फैले हैं दूर-दराज
अपनों से
उदास
संगी-साथी दूर है
उन्हें भी अपनाओ
अपनाने से प्यार बढ़ता है
बिखरता नहीं
जो चिंतन जुड़ने में है
वो ऐंठन में नहीं
खुलो मिलो जुड़ो
प्यारा करो, दिल से करो