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शब्द / अचल वाजपेयी

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हर शब्द

कहीं न कहीं

कुछ बोलता है

वह कभी आग

कभी काला धुआँ

कभी धुएँ का

अहसास होत है


आओ, इस शब्द को

जलती आग-सा जियें