Last modified on 26 अक्टूबर 2007, at 23:07

पतझर-1 / अचल वाजपेयी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:07, 26 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अचल वाजपेयी |संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य कविताएँ }} पत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पतझर की तरह टूटना

अंधेरे का घिरना

सन्नाटे के चाबुक

पीठ पर पड़ना

बेहद ज़रूरी है

इससे पीठ होने का अहसास

गहरा होता है

देह में अचानक

आग के सोते फूटते हैं

खुलासा होता है

कंधों से जुड़े दो हाथ

आख़िर क्यों हैं