भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उत्तर नहीं हूँ / धर्मवीर भारती

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:58, 13 नवम्बर 2007 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उत्तर नहीं हूँ

मैं प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !


नये-नये शब्दों में तुमने

जो पूछा है बार-बार

पर जिस पर सब के सब केवल निरुत्तर हैं

प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !


तुमने गढ़ा है मुझे

किन्तु प्रतिमा की तरह स्थापित नहीं किया

या

फूल की तरह

मुझको बहा नहीं दिया

प्रश्न की तरह मुझको रह-रह दोहराया है

नयी-नयी स्थितियों में मुझको तराशा है

सहज बनाया है

गहरा बनाया है

प्रश्न की तरह मुझको

अर्पित कर डाला है

सबके प्रति

दान हूँ तुम्हारा मैं

जिसको तुमने अपनी अंजलि में बाँधा नहीं

दे डाला !

उत्तर नहीं हूँ मैं

प्रश्न हूँ तुम्हारा ही !