Last modified on 5 नवम्बर 2007, at 00:31

वह ख़ुद तक पहुँचे / सविता सिंह

77.41.25.68 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:31, 5 नवम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सविता सिंह |संग्रह=नींद थी और रात थी }} कितना कठिन है उस ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कितना कठिन है उस स्त्री के जीवन का रास्ता

जो किसी पुरूष से कहे --

'मेरा जन्म ही तुमसे प्रेम करने के लिए हुआ है'


यह समय भी नहीं है उससे कुछ कहने का

प्रेम में वह इतनी निरीह दिखती है

इतना ज़रूर सोचती हूँ

जब वह निकले इससे बाहर

सामने मिले उसे सीधा-सरल कोई रास्ता

जिस पर चलकर वह ख़ुद तक पहुँचे