भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम कहाँ हो / अमृता भारती

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:13, 14 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> तुम कहाँ हो ? यह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम कहाँ हो ?

यहाँ नहीं
वहाँ नहीं

शायद अन्दर हो
पर हर कन्दरा के मुख पर
भारी शिला का बोझ है --

मैं भी
यहाँ नहीं
वहाँ नहीं
शायद अन्दर हूँ

पर यह जो बाहर है
मेरा यह 'मैं'
यह स्वयं एक शिला है
अन्दर के मार्ग पर रखा
एक कठिन अवरोध --

और यों मेरा
स्वयं तक न पहुँच पाना
एक ऐसी दूरी है
जो सदा एक प्रश्न की तरह
ध्वनित होती रहती है

तुम कहाँ हो ?