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फिंके हुए सेब / ओएनवी कुरुप

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हम कश्मीर में हैं ।

हमने देखा
बच्चे कैसे
बेच्र रहे हैं सेब
अवन्तीपुरम् के रास्ते में ।

मेरे सेब लीजिए, ले लीजिए सेब मेरे, जनाब
कह रहे हैं बच्चे

सड़े-गले सेब, गन्दे से सेब
पड़े हुए थे उनकी पुरानी-धुरानी टोकरियों में ।
सड़े-गले ये सेब
उठाए थे उन्होंने कूड़े के उस ढेर से
सेब के बगीचे से निकला था जो ।

बच्चों के चेहरे
सुन्दर थे उन सेबों से
लेकिन बेहद गन्दे थे
उनकी लम्बी कमीज़ें भी गन्दी थीं बेहद
दाग-धब्बों से भरी ।

ये बच्चे भी फिंके हुए सेब हैं
फेंक दिया गया है जिन्हें
लोगों से भरी इस दुनिया से बाहर...!

उन की आवाज़ अब भी गूँज रही है कानों में --
सेब लीजिए, ले लीजिए सेब मेरे, जनाब !