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मारग / प्रमोद कुमार शर्मा
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बारै घणौ अन्धारौ
हो‘री है बरसात जम‘र
पण सूकौ है म्हारौ आंगणौ !
म्हूं पूछूं बादळा सूं -
‘‘म्हारै साथै ओ इन्याव क्यूं ?’’
नीं देवै पडुत्तर।
म्हूं समझूं बात नै
अर लेय‘र एक लाठी
निकळ पडूं घर स्यूं
सोधतो मारग
बादळां तांई पूगण रो !