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हवा री तासीर / भंवर भादाणी
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तुतलावण रै सागै
औ जाण्यौ
अन्धारे रौ भी आपरो रंग
जाण्यौ-पैचाण्यौ
ऊगते सूरज नै देख‘र
औ जाण्यौ
रोसनी रौ काम है -
अन्धेरो चाटणौ
पगां ताण चालतां
काळी पाटी माथै
क ख ग लिखतां
पैचाण्यौ
हरफां रौ काळे माथै उभरणो
डगमगाता पगा सूं
घर पिछवाड़ै
म्है-खुद
फुसफुसावतां फूलां नै सुण्या
कै-आदत है
अन्धेरे री
पांखड़यां नौचणौ
पण
तासीर है
ताजा हवा री
बपरांवती जावै जूंण !