भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पांणी (2) / भंवर भादाणी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:14, 30 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भंवर भादाणी |संग्रह=थार बोलै / भंवर भादाणी }} [[Catego…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


थूं तो कसर नीं राखी
थारी औकात
जतावण सारू
घणौ ई कोप्यौ
बरस्यो-अणथाग
इकधारो
लैवण म्हारो
पतियारो -
पण थूं हीयै
हाथ राख -
बता कुण -
हां कुण हारयौ ?
थूं क‘
म्हूं ?
थें किती ई बार
पांणी री छळना
मृगतृष्णा दिखा‘र
बापड़ै हिरणीयै रौ
भख लियो सांस।
थारां नांव
अनेक
हे हवा रा देव !
मरूतवाण
आंधी-अधंड़-भतूळियानाथ !
कठै ई थू
इन्द्र ! पुरन्दर !
उजाड़या थे जळंधर।
मोटा मोटा सैर
परकोटी नगरयां
थूं भूलग्यो क‘
आदमी
आदमी ई हुवै
देवता नीं ।
आदमी
जिका लड़ै
अफ्रीका
फिलस्तीन, नामीबिया,
लैटिन अमेरिका
वीतनाम, कांगो
अर -
अंगोला में खाली पेट
राखण नै
आदमजात रौ
पांणी ।
थार रै आंगण
म्हारौ घरबार
पांणी रौ कांई करूं
बखाण
घूंघटा
माथै ईंढूणी
बळता पगां
लावै हिरण्यां
ढाणी पार
आंख्यां पसार
पांणी ।
बणतोई रयौ है
थूं बैरूपियो
उल्लू-नरेस ।
पांणी आज भी
थारै
गूंथ्योड़े खूंजा
है कैद ।
थूं भी खूब है
सुरग रौ पळको दिखा‘र
लूंटै थारै पांवणा रौ
पसेवो-पांणी ?
आदमी -
रोज खोदै
पताळ
काढ़ण नै - पांणी
पांणी थांरी अर म्हारी आंख में
पांणी
उणां रै चैरे
पांणी।