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हूंस / हरिमोहन सारस्वत
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माटी रै धणी रो हेलो
अर चातकडै री तिरस देख
थ्यावस नीं राख सकूं म्हूं
बरफ दाईं जमणै री
ओळौ नीं,
बणन दे म्हानै
बिरखा री छांट,
माटी मांय रळतां
जकी
तिरस री पीड ल्यै बांट
काळजां ठण्ड बपराणो चांवूं
ठण्डो होवण स्यूं पैली..!