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मेह री पटक / श्याम महर्षि

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सात दिनां सूं
लगोलग
मेह री झड़ी,
गांव रा चारूं बास
गोड़ा तांई
डूबग्या,
आथूणै बास
घणकरा टापरा
माटी-गोबर अर फूस सूं बणैड़ा,
तावड़ो निसरतां ई
भीतां उबस‘र
पड़नै लागी धड़ा-धड़।

गोधू री साळ
बेजै री पुराणती रसोई
काल दिनुगै ई पड़गी,
टाबर संजोग सूं बारै हा
बेजै री लुगाई
गयैड़ी खेत भातै तांई,

टापरा पड़नै रै डर सूं
बास गळी रा लोग
दो दिनां सूं
जाग रैया है आखी रात
कठैई कोई दब नीं जावै।

अणूंतै मेह सूं
धाप‘र खेलणो
बिसरग्या टाबर,
घर-गुवाड़-बाखळ
अर गळ्या सूं डाबलै जोड़ै तांई
घणकरा घरां
आज ई चुल्हा
ठंडा पड़या है
न सुखी लकड़ी
न किरासणी तेल।
सगळा ई जोेवै
आभै कानीं
इण आस सूं कै कदास थम जावै
बरसणों ओज्यूं ई।
लारली सूनी पड़ी गळी रो मैळवाड़ो
पाणी उपरां बैवे
अर गिंध सूं
हुय रैया है बास गळी रा लोग

झांझरकै चार बजै तांई
इकरायो फेरूं बरस्यो
दिनूगै बास गळी रा
ऐनाण ढूंढै हा
सरकारी अफसर !