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बीज ! / कन्हैया लाल सेठिया

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ले लिया
पड़तां ही छांट
पग
धरती री गोदी में सूतो
बीज,
आग्यो
सिरजन रो खिण,
कोनी ढबै अबै
कठेई बीच में
जठै तांई बण‘र
पाछो बीज
नहीं कर देसी
आप रै आपै नै
बिसरजण !