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जिन्हें अपना नहीं पर दूसरों के दर्द का ग़म है / गौरीशंकर आचार्य ‘अरुण’
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जिन्हें अपना नहीं पर दूसरों के दर्द का ग़म है ।
ज़माने में अभी भी लोग ऐसे हैं मगर कम हैं ।
बहुत हमराह बनकर लूटते हैं राह में अक्सर,
जो मंज़िल तक निभाते साथ ऐसे हमसफ़र कम हैं ।
बदलती जा रही है वक़्त की फ़ितरत दिनो दिन पर,
अभी रिश्तों की धडकन में बचा दम है, मगर कम है ।
मुहब्बत लफ़्ज़ का मतलब समझ लें तो ज़रा-सा है,
हमारे दिल में वो हो और उस दिल में अगर हम हैं ।
लकीरें भाग्य की जो शख़्स चाहे गर बदलना तो,
बहुत मुश्किल नहीं जिसके इरादों में अगर दम है ।
जुदा होते नहीं वो एक पल भर भी कभी हमसे,
समन्दर के उधर वो और साहिल पे इधर हम हैं ।