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बाट तेरी जोहती हूँ / मानोशी
Kavita Kosh से
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आज भी मैं
बाट तेरी जोहती हूँ |
रात जब तू खो गया था,
आँख से चुपचाप बह कर,
झर गया था एक अश्रु
मन का आर्तनाद बन कर |
पथ अभी भीगा हुआ है
फिर बुहारा नहीं आँगन,
राह अब भी देखती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ |
सत्य ये जीवन मनोरम
हर इक पल है बहुत प्यारा,
कई छोटी-बड़ी खुशियों
से महकता बाग़ सारा,
पर कहीं कुछ छूटता है
रह गया है कुछ अधूरा,
उस अधूरी कल्पना में
नित नया रंग जोड़ती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ|
था नही साकार पर तू
स्वप्न भी कोई नहीं था,
संग जीते हर इक पल में
अंग-अंग बँधा कहीं था.
तू फिरेगा फिर उसी मन
फिर सुहाना रूप धर कर,
है यही विश्वास, अब ले
बंद पलकें खोलती हूँ |
बाट तेरी जोहती हूँ |